मारुति की कहानी, इंदिरा ने कैसे किया संजय का सपना पूरा (Maruti's story, how Indira fulfilled Sanjay's dream)
Mar 22, 2024
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14 दिसंबर 1983 को पॉपुलर मारुति 800 पेश की गई, जो भारत की सफल कारों में से एक रही है. 1983 के पहले भारत में कई सालों से कारों का निर्माण हो रहा था. 1950 से ज्यादा किफायती "पीपल्स कार" (लोगों की कार)" को लेकर चर्चाएं थीं. लेकिन, किफायती कार आने में दशकों लग गए, जिसे मिडिल और लोअर मिडिल क्लास भी खरीद पाएं. यह थी मारुति 800. लॉन्च का श्रेय अक्सर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को दिया है. हालांकि, जून 1980 में संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मौत हो गई थी. इंदिरा गांधी ने "पीपल्स कार" विजन को आगे बढ़ाया था.
The popular Maruti 800 was introduced on 14 December 1983, which has been one of the successful cars of India. Before 1983, cars were being manufactured in India for many years. There were discussions about a more affordable "people's car" in the 1950s. But it took decades for an affordable car to be available that even the middle and lower middle class could buy. This was the Maruti 800. The credit for the launch is often given to former Prime Minister Gave it to Indira Gandhi's son Sanjay Gandhi. However, Sanjay Gandhi died in a plane crash in June 1980. Indira Gandhi had put forward the "People's Car" vision.
1959 में एक समिति ने ऐसी कार को "डिजायरेबल नेसेसिटी" बताया था. एक साल बाद, एक अन्य समिति ने समर्थन किया. कार का विचार एक दशक तक कागज पर रहा, जब सरकार ने निजी कंपनियों को छोटी कार के लाइसेंस आवेदन को इन्वाइट नहीं किया. सरकार के इन्वाइट पर 18 आवेदक आए, जिनमें टेल्को (जो अब टाटा मोटर्स है) भी शामिल थी. एक कंपनी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय की थी, जो मारुति थी. मारुति को लाइसेंस मिल गया.
In 1959, a committee described such a car as a "desirable necessity". A year later, another committee supported. The idea of the car remained on paper for a decade, when the government did not invite small car license applications to private companies. 18 applicants came on the government's invitation, including Telco (now Tata Motors). One company belonged to the then Prime Minister Indira Gandhi's son Sanjay, which was Maruti. Maruti got the license.
शुरुआत में पुरानी दिल्ली में रोशनआरा बाग के पास किराए का गैरेज लिया और कार प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. रिपोर्ट्स अनुसार, संजय गांधी ने रोल्स रॉयस के साथ तीन साल तक ट्रेनिंग की थी. बाद में सामने कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मामूली क्वालिफिकेशन ही थी. भले मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ज्यादा क्वालिफिकेशन नहीं थी लेकिन संजय को मारुति फैक्ट्री शुरू के लिए गुड़गांव में "12,000 रुपये प्रति एकड़ से थोड़ा कम" पर 297 एकड़ जमीन मिल गई.
Initially, he took a garage on rent near Roshanara Bagh in Old Delhi and started working on the car project. According to reports, Sanjay Gandhi had trained with Rolls Royce for three years. Later it turned out that he had only a minor qualification in mechanical engineering. Although he did not have much qualification in mechanical engineering, Sanjay got 297 acres of land in Gurgaon to start a Maruti factory at "a little less than Rs 12,000 per acre".
योजना पूरी तरह से स्वदेशी कार बनाने थी, जिसकी कीमत लगभग 8,000 रुपये हो. मई 1975 में जब यह 'लॉन्च' के करीब पहुंची तो एक्सशोरूम कीमत 16,500 रुपये तय थी. हरियाणा में ऑन रोड कीमत 21,000 रुपये होती लेकिन बाजार के मौजूदा मॉडलों की तुलना में यह 5,000-10,000 रुपये सस्ती थी. लेकिन, वह दिन कभी नहीं आया जब संजय गांधी की मारुति शोरूमों तक पहुंचती.
The plan was to make a completely indigenous car, which would cost around Rs 8,000. When it was nearing its launch in May 1975, the ex-showroom price was fixed at Rs 16,500. The on-road price in Haryana would have been Rs 21,000 but compared to current models in the market, it was cheaper by Rs 5,000-10,000. But, that day never came when Sanjay Gandhi's Maruti would reach the showrooms.
मई 1975 में दावा था कि प्रति माह 12-20 यूनिट के साथ प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा और 4 सालों में इसे 200 यूनिट प्रति दिन तक जाएगा. हकीकत में 31 मार्च 1976 तक कुल उत्पादन मात्र 21 यूनिट ही था. सिर्फ कारें बनी थीं. जून 1975 में उनकी मां और पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और संजय गांधी राजनीति में आ गए. इससे कार प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ.
In May 1975, it was claimed that production would be started with 12-20 units per month and would go up to 200 units per day in 4 years. In reality, the total production till March 31, 1976 was only 21 units. Only cars were made. In June 1975, his mother and PM Indira Gandhi imposed emergency in the country and Sanjay Gandhi entered politics. The car project was affected by this.
फिर, इंदिरा गांधी 1977 का चुनाव हार गईं और 1978 में एक अदालत ने मारुति को बंद का आदेश दिया. कंपनी तभी बंद हो गई होती लेकिन 1980 में इंदिरा फिर से पीएम बनीं. अब जून (1980) में विमान दुर्घटना में संजय की मौत हो गई. भारत सरकार ने मारुति लिमिटेड को 13 अक्टूबर, 1980 से अंडर ले लिया.
Then, Indira Gandhi lost the 1977 elections and in 1978 a court ordered Maruti to shut down. The company would have been closed immediately but Indira became PM again in 1980. Now Sanjay died in a plane crash in June (1980). The Government of India took Maruti Limited under control from October 13, 1980.
साथ ही, जापान की सुजुकी को मारुति का कुछ हिस्सा बेचा गया और फिर 1983 में पहली मारुति 800 लॉन्च हुई. यहीं मारुति के घर-घर पहुंचने का सफर शुरू हुआ. मारुति 800 में सिर्फ नाम ही संजय गांधी की मारुति का था, उसके अलावा यह नया प्रोडक्ट था.
Also, some part of Maruti was sold to Suzuki of Japan and then in 1983 the first Maruti 800 was launched. It was here that Maruti's journey of reaching every home began. Maruti 800 had only the name of Sanjay Gandhi's Maruti, apart from that it was a new product.
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