ये गलतियां दोहराते हैं स्कूल:फीस लालच और अच्छे रिजल्ट का दबाव बिगाड़ रहा बच्चों का फ्यूचर (Schools repeat these mistakes: Fee greed and pressure of good results spoiling children's future)
Aug 29, 2022
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आइए देखें बड़ी गलतियां
(Let's see the big mistakes)
1) रियलिस्टिक व्यू अभाव (Lack of realistic view)
काफी स्कूलों में इक्कीसवी सेंचुरी के जॉब्स और सोसायटी को ध्यान में रख पढ़ाई नहीं कराती। स्टूडेंट्स को एजुकेशन के आखिरी दो साल के पहले पसंद के सब्जेक्ट्स चुनने का मौका नहीं मिलता। अधिकतर एजुकेशन बंद कमरों में होती है, जहां टीचर्स आकर मोनोलॉग (एकालाप) देते हैं, बच्चे नोट कर कर के कॉपियां भरते हैं। टेस्ट में मार्क्स भी तभी दिए हैं जब स्टूडेंट ठीक वैसा ही उत्तर लिखे जैसा क्लास में लिखाया था। स्टूडेंट्स स्ट्रीट-स्मार्ट नहीं बनते।
Many schools do not provide education keeping in mind the jobs and society of the 21st century. Students do not get a chance to choose the subjects of their choice before the last two years of education. Most of the education takes place in closed rooms, where teachers come and give monologues, the children note down and fill out the copies. Marks are also given in the test only when the student wrote the exact same answer as was written in the class. Students do not become street-smart.
2) नॉलेज के बजाय मार्क्स
(Marks instead of knowledge)
इंडिया के अधिकतर स्कूलों में केवल दो बातें है: (i) कोर्स कम्पलीट और (ii) ज्यादा मार्क्स लाना।
टीचर्स का काम कोर्स कम्पलीट कराना है और स्टूडेंट्स का ज्यादा से ज्यादा मार्क्स लाना। स्कोर, ग्रेड और बेंचमार्क का एक खतरनाक जुनून सवार है। क्लास का टॉपर और टॉप दो या तीन बच्चे बाकी पूरी क्लास के लिए आदर्श की तरह प्रस्तुत हैं। बाकि बच्चों को उनके जैसा बनने के लिए प्रेशराइज क्लासमेट्स को पछाड़ने के लिए, बिना सोचे समझे फैक्ट्स एंड फिगर्स को याद हैं।
The job of teachers is to complete the course and bring maximum marks to the students. There is a dangerous obsession with scores, grades and benchmarks. The topper of the class and the top two or three children are role models for the rest of the class. The rest of the kids remember facts and figures without hesitation, to outwit classmates to pressure them to be like them.
3) शिक्षा का ओवर-कमर्शियलाइजेशन
(Over-commercialization of education)
पाकिस्तान के शायर इब्ने इंशा 1970 की अपनी एक कविता में हैं, इल्म बड़ी दौलत है। तू भी स्कूल खोल। इल्म पढ़ा। फीस लगा। दौलत कमा। फीस ही फीस। पढ़ाई के बीस। बस के तीस। यूनिफॉर्म के चालीस। खेलों के अलग। वैराइटी प्रोग्राम के अलग। पिकनिक के अलग। लोगो के चीखने पर मत जा। दौलत कमा। उससे स्कूल खोल। उनसे और दौलत कमा.... आदि।
Pakistani poet Ibn Insha in one of his poems from 1970, Ilm Badi Daulat Hai. You also open school. Read ilm. Fee charged. Earn wealth Fee is fee. Twenty of studies. Bus thirty. Forty of uniforms. different from games. Variety program. Aside from a picnic. Don't go on screaming people. Earn wealth Open school with him. Earn more wealth from them....etc.
कविता आगे है, क्लियर है इशारा शिक्षा के व्यवसायीकरण पर है। भारत के कई स्कूलों की स्थापना आसान पैसा बनाने के एकमात्र उद्देश्य से है। स्टूडेंट्स को एजुकेशन देना और उन्हें बेहतर बनाना प्राइमरी विजन नहीं है। लंबे समय में नुकसान पूरे देश को उठाता है।
The poem is ahead, it is clear that the gesture is on the commercialization of education. Many schools in India are established with the sole purpose of making easy money. To educate and make students better is not the primary vision. In the long run, the loss bears the entire country.
4) दसवीं के बाद छंटनी (Retrenchment after 10th)
अनेकों स्कूल दसवीं कक्षा के बाद 11वीं और 12वीं का रिजल्ट सुधारने के लिए कमजोर स्टूडेंट्स की छंटनी करते हैं। ऐसा से कमजोर स्टूडेंट्स के पास कोई ऑप्शन नहीं रहता है। क्योंकि इस स्तर पर और किसी स्कूल में एडमिशन लेना मुश्किल होता है। बच्चों के कॉन्फिडेंस पर इसका जबरदस्त नेगेटिव असर है।
Many schools sort out weak students after class 10th to improve their 11th and 12th results. Because of this, weak students do not have any option. Because it is difficult to get admission in any other school at this level. It has a tremendous negative effect on children's confidence.
5) सब्जेक्ट के लिए मजबूर (Subject to compulsion)
ऐसा स्कूलों में अधिक है, जहां कक्षा 11 और 12 में स्टूडेंट्स की संख्या कम है। छोटे बैच साइज के कारण स्कूल की इनकम कम है। ऐसे में स्टूडेंट्स को एक ही सब्जेक्ट ब्रांच चुनने के लिए प्रेशराइज करते हैं, ताकि अधिक टीचर्स रिक्रूट ना करने पड़े।
This is more so in schools, where the number of students in class 11 and 12 is less. School income is low due to small batch size. In such a situation, students are pressurized to choose the same subject branch, so that more teachers do not have to be recruited.
6) टीचर्स (Teachers)
स्कूल कभी-कभी अच्छे क्वालिफाइड टीचर्स को रिक्रूट के बजाय इंटर्न्स या जूनियर स्टाफ से काम हैं, क्योकि उन्हें सैलरी कम देती है। स्टूडेंट्स की पढ़ाई और पर्सनेलिटी पर बुरा असर है। स्टाफ सैलरी के लिए कई स्कूल, टीचर्स पर टीचिंग के अलावा कई एडमिनिस्ट्रेटिव कामों का बोझ बढ़ाते हैं, इससे टीचर्स की टीचिंग एफिशिएंसी कम होती है।
Schools sometimes employ interns or junior staff instead of recruiting well-qualified teachers because they are paid less. There is a bad effect on the studies and personality of the students. For staff salaries, many schools increase the burden of many administrative tasks in addition to teaching on the teachers, thereby reducing the teaching efficiency of the teachers.
7) काउंसलर्स का ना होना (Absence of counselors)
अधिकतर स्कूलों में करिअर गाइडेंस, डिसिप्लिन और साइकोलॉजिकल इशूज के लिए काउंसलर्स होते नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं है कि भारत स्टूडेंट्स के सुसाइड के मामले में वर्ल्ड कैपिटल है और अधिकतर इंडियन स्टूडेंट्स सिर्फ सात करिअर विकल्पों के बारे में हैं।
Most schools do not have counselors for career guidance, discipline and psychological issues. No wonder India is the world capital in student suicides and most Indian students have just about seven career options.
8) फाइनेंशियल एजुकेशन (Financial education)
बेस्टसेलिंग बुक रिच डैड पुअर डैड के ऑथर रोबर्ट टी कियोसाकी कहते है कि पैसे का लालच और पैसे की कमी दोनों मिलकर दुनिया की सभी बुराइयों की जड़ है। फिर भी शायद ही कोई इंडियन स्कूल बच्चों को बेसिक लेवल का भी फाइनेंस मैनेजमेंट सिखाते होंगे।
Robert T Kiyosaki, author of the bestselling book Rich Dad Poor Dad, says that greed for money and lack of money together are the root of all evil in the world. Yet hardly any Indian school will teach finance management to children even at the basic level.
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