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निर्णय (Decision) -Story/Poem

निर्णय (Decision) -Story/Poem

निर्णय (Decision) -Story/Poem

कल शाम दोस्तों के साथ रेस्टोरेंट जाना हुआ हमारे ठीक बाजू में  ही एक पूरी फैमिली बैठी थी।
माता पिता उनके बेटा और बेटी। 
हमारी टेबल उनकी टेबल के पास ही थी। हम अपनी बातें कर रहे थे, वो अपनी।
तभी वो व्यक्ति ( पिता ) खाने का ऑर्डर करने काउंटर पर जा रहे थे। वो सभी से पूछ रहे थे कि कौन क्या खाएगा ?
बेटी ने तुरंत कहा बर्गर
बच्ची मम्मी ने कहा डोसा
 पर बेटा तय नहीं कर पा रहा था। वो कभी कहता बर्गर, कभी कहता कि पनीर रोल खाना है।
पिता कह रहे थे कि तुम ठीक से तय करो कि क्या लोगे ??
और हाँ ठीक से सोच लेना अगर तुमने पनीर रोल मंगाया, तो फिर दीदी के बर्गर में हाथ नहीं लगाओगे। बस जल्दी से फाइनल तय करो कि तुम्हारा मन क्या खाने का है ?
कोई भी एक बता दो
इतने में हमारे खाने का ऑर्डर आ चुका था। पर मेरे बगल वाली फैमिली अभी उलझन में थी। 
बेटे ने कहा कि वो तय नहीं कर पा रहा कि क्या खाए। 
मां बोल रही थी कि बेटा तुम ऐसा करो थोड़ा-थोड़ा सभी में से खा लेना। अपने लिए कोई एक चीज़ मंगा लो। पर बेटा दुविधा में था। 
पिता समझा रहे थे कि इसमें इतना ज्यादा सोचने वाली क्या बात है ? 
कोई एक चीज़ मंगा लो। जो मन हो, वही ले लो। 
पर लड़का सच में तय नहीं कर पा रहा था। वो बार-बार मीनू बोर्ड पर बर्गर की ओर देखता, फिर पनीर रोल की ओर।
मेरा ध्यान हजार न चाहते हुऐं भी उनकी बातों में चला ही जा रहा था में बेकार में इरीटेड फील करने लग गया कहीं न कहीं मुझे लग रहा था कि उसके पिता भी बात को क्यो रबर बैण्ड की तरफ खींच क्यों रहे हैं वो  ऐसा क्यों नहीं कह देते कि ठीक है, एक बर्गर ले लो और एक पनीर रोल भी आखिर खुद का ही तो परिवार हैं 
पर नहीं साहब उनके बीच यही  चर्चा लगातार चल रही थी। 
पापा बेटे को समझाने में लगे थे कि कोई एक चीज़ ही आएगी। मन को पक्का करो। 
दस मिनिट की माथापच्ची के बाद आखिर में बेटे ने भी बर्गर ही कह दिया।
जब उनका खाना चल रहा था, हमारा खाना पूरा हो चुका था। कुर्सी से उठते हुए अचानक मेरी नज़र लड़के के पिता से मिली। 
उठते-उठते मैं उनके पास चला गया और हैलो करके अपना परिचय दिया। 
बात से बात निकली। मैंने उनसे कहा कि मन में एक सवाल है, अगर आप नाराज न हो तो एक सवाल पूछ लूँ ?
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, जी जरूर “पूछिए।” क्यों नहीं ?
जब से आपका परिवार यहाँ आया था में तब से न चाहते हुऐ
आपका खाने के मीनू को लेकर हुआ सारा वार्तालाप सुन रहा था  
"आपका बेटा तय नहीं कर पा रहा था कि वो क्या खाए। वो बर्गर और पनीर रोल में उलझा था। मैंने बहुत देर तक देखा कि आप न तो उस पर नाराज़ हुए, न आपने कोई जल्दी की। न आपने ये कहा कि आप दोनों चीज़ ले आते हैं। मैं होता तो कह देता कि दोनों चीज़ ले आता हूं, जो मन हो खा लेना। बाकी पैक करा कर ले जाता।"
उन्होंने कहा, “ये बच्चा है। इसे अभी निर्णय लेना सीखना होगा। इसने जो भी मांगा था उन दो चीजों मगंवाना कोई बड़ी बात नहीं थी।
बड़ी बात है, इसे समझना होगा कि ज़िंदगी में दुविधा की गुंजाइश नहीं होती।
फैसला लेना पड़ता है मन का क्या है, मन तो पता नहीं क्या-क्या करने को करता है। पर कहीं तो मन को रोकना ही होगा।
अभी नहीं सिखा पाया तो कभी ये कभी नहीं सीख पाएगा।
“इसे ये भी सिखाना है कि जो चाहा, उसे संतोष से स्वीकार करो।
इसीलिए मैं बार-बार कह रहा था कि अपनी इच्छा बताओ।
इच्छा भी सीमित होनी चाहिए।
“और एक बात, इसे समझाता हूं कि जो एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते, वो हर चीज़ के लिए मचलते हैं।
और सच ये है कि हर चीज़ न किसी को मिलती है,
 न मिलेगी।”..

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