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 गोधूलि काल

गोधूलि काल

 यह समय मांगलिक कार्याें के लिए श्रेष्ठ माना गया है. विवाहादि कार्य इस समय किया जाना श्रेष्ठ बताया गया है. गोधूलि काल लग्न के दोषों को दूर करता है. अष्टम भाव अर्थात् पाप भाव में गोचर कर रहे ग्रहों के कारण होने वाले अनिष्टों से मुक्त रखता है. साथ ही पात और जामित्रादि दोषों का नाश करता है.


गोधूलि बेला का संबंध घर वापसी से होता है. पशुधन के साथ ग्वाले एवं अन्य जन भी घर लौट रहे होते हैं. पक्षी घोंसलों की ओर आ रहे होते हैं. इस कारण इस समय में उत्साह आनंद और उमंग की स्थिति बनती है. सामान्य दोष सहज ही नष्ट हो जाते हैं. घर के लोग अपनों से मिलकर प्रसन्न होते हैं. इसी प्रकार बिछड़े बछड़े गौमाता से मिलकर हर्षित होते हैं. यह मंगलबेला काल होता है.
महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य विवाह में मुहूर्त ग्रंथाचार्याें ने वांछित मुहूर्त में शुद्ध विवाह लग्न न निकलने की स्थिति में गोधूलि लग्न को मान्यता दी है.

नो वा योगो न मृतिभवनं नैव जामित्र दोषो।
गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्वकार्येषु शस्ता।।


गोधूलि बेला संध्या काल के पूर्व की स्थिति है. इस समय आकाश में सूर्य की किरणें सुनहरी छटा बिखेर रही होती हैं. धूप की उपस्थिति बनी रहती है. इसे अपराह्न के तुरंत बाद की अवस्था भी कह सकते हैं.


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